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कहावत और कथा

''तूफ़ान आया
झुक कर बची रह गई घास
और सारे तने पेड़
हो गए थे जमीदोज़''
यही कथा सुनी न जाने कितनी बार

बाप से तकरार करती मेरी आँखों को पढ़
माँ यूं सुनाती ये किस्सा
जैसे सुना रही हो अपना पूरा जीवन
जैसे थाम लेना चाहती हो वक्त
रोक देना चाहती हो
एक तूफ़ान।
उस आवाज के सन्नाटे में
अकेला सा हो जाता मै
सोचता
गर यही जीत है
तो हार किसे कहते हैं।

बाप, गुरुओं से होते हुए
अब हाकिमों से सुनता हूँ
यही कथा
जैसे हो मौसम विभाग की कोई चेतावनी
'' सब्ज मौसम बदल सकता है
आ सकता है कोई तूफ़ान कभी भी''
:
:
नहीं कोई तूफ़ान नहीं आया
हमने आने ही नहीं दिया
पर सन्नाटे में
अपना-अपना अकेलापन लिए
अपने- अपने से अजनबी
हम सभी
हमदर्द दोस्त
जिन्होंने संजो रखे हैं अब भी
न जाने किन किस्सों के जमीदोज़ पेड़
हो जाते हैं
कुछ और अकेले
जब छेड़ देता है कोई ये बदमजा किस्सा
'' छाया सिर्फ वही पेड़ देते हैं
जो तने रहते हैं ''

6 टिप्पणियाँ:

बहुत गहन अभिव्यक्ति!

28 जून 2010 को 5:24 pm बजे  

shukriya udan jee

28 जून 2010 को 10:54 pm बजे  

अच्छी कविता पवन।
ये सारे मुहावरे समाज की प्रचलित व्यवस्था को ही मज़बूत करते हैं इनकी नयी मीमांसा ज़रूरी है…तुम्हें बधाई…तने रहो!!!

29 जून 2010 को 7:23 am बजे  

पूरे ब्लॉग पर एक टिप्पडी बालाजी ने भेजी है इसे आप लोगों के लिए लगा रहा हूँ
Dear Pawan
I would appreciate if you and your readers take this comment as critical appraisal.
Went through your blog. The reaction which you got was a normal one. Unlike America where one can question Pentagon India is different ball game. Ashok Bhai' poem some how bring the ground realities behind a youth's motivating factor to join the forces.
I personally feel violence do not bring amicable solution. If any violent mean is used to solve any kind of problem then it becomes a dynamite. Though this may sound very technical but the civil society must know to distinguish between Police, Para Military personal and Armed Forces. All the three has different roles and act is different kind of sphere.
This clarity becomes more important for Political leaders because its they who ultimately take decisions and lay the course. One interesting thing which very few people must have taken note is that this time though armed forces had political pressure on them (P Chidambram) but they ward off the pressure and limited their role (primarily due AK Antony) but this one is rare one. Corruption of all kind has set in among the forces and they are becoming more political now. In short there is a dire need to reform the forces.
To cut short the story I would say that a problem whit heavy policatical conotation can not be soved militiraliy. Secondly a holistic change is required in ow the political class see the situation and thirdly violence in any form by any one must be avoided as a tool to settel scores.
Reagrds
--
Balaji Madiq
Communication Desk
Eklavya
E-10 Shankar Nagar
BDA Colony Shivaji Nagar
Bhopal- 462016
Tel: 0755- 2671017

29 जून 2010 को 8:25 am बजे  

SHAANDAAR PRASTUTI....
PADHKER, BAHUT ACHHA LAGA ...

BAHUT KHOOB...PAWAN JEE...

30 जून 2010 को 1:45 am बजे  

ऊपर धूप घनेरी
नीचे छाया पेड़ की
बादल तब भी न जाने
क्‍यों नहीं बरसते
हम क्‍यों नहीं हंसते।

17 जुलाई 2010 को 6:23 pm बजे  

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