''तूफ़ान आया
झुक कर बची रह गई घास
और सारे तने पेड़
हो गए थे जमीदोज़''
यही कथा सुनी न जाने कितनी बार
बाप से तकरार करती मेरी आँखों को पढ़
माँ यूं सुनाती ये किस्सा
जैसे सुना रही हो अपना पूरा जीवन
जैसे थाम लेना चाहती हो वक्त
रोक देना चाहती हो
एक तूफ़ान।
उस आवाज के सन्नाटे में
अकेला सा हो जाता मै
सोचता
गर यही जीत है
तो हार किसे कहते हैं।
बाप, गुरुओं से होते हुए
अब हाकिमों से सुनता हूँ
यही कथा
जैसे हो मौसम विभाग की कोई चेतावनी
'' सब्ज मौसम बदल सकता है
आ सकता है कोई तूफ़ान कभी भी''
:
:
नहीं कोई तूफ़ान नहीं आया
हमने आने ही नहीं दिया
पर सन्नाटे में
अपना-अपना अकेलापन लिए
अपने- अपने से अजनबी
हम सभी
हमदर्द दोस्त
जिन्होंने संजो रखे हैं अब भी
न जाने किन किस्सों के जमीदोज़ पेड़
हो जाते हैं
कुछ और अकेले
जब छेड़ देता है कोई ये बदमजा किस्सा
'' छाया सिर्फ वही पेड़ देते हैं
जो तने रहते हैं ''
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