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(अपनी ही डायरी के कुछ पिछले पन्नों से बतियाते हुए हाशिए पर लिखीं अपनी कुछ कविताओं से मुलाकात हो गई.... डर लगा वक्त की धूल के गुबार में कहीं खो ना जाएं. सोचा आपसे परिचय करवा दूं तो यूं अकेली नहीं रहेंगी)


‘बच्चा देख रहा है सपने.......’
बच्चा देख रहा है सपनें....
बाकी ही है अभी
उसके सपनों का एक-एक करके टूट जाना
और बच्चा नहीं जानता
सपनों की इस लगातार टूटन से उकताकर
एक नींद
डतर आएगी उसके भीतर
फिर वो कई सीढ़ियां चढ़ेगा
लेकिन आगे नहीं बढ़ेगा
हां ! बड़ा होना बड़ी निर्मम प्रक्रिया है
काश!
बच्चा सीख ले वक्त रहते ख़्वाब संजोना
जागते रहने को
बहुत जरूरी है /
किसी ख़्वाब का होना।

दोस्तों से .....
हैरान मत होना
गर कहूं
सिर्फ आड़ी तिरछी रेखांए
मुड़कर-जुड़कर
बन जानी हैं अक्षर
अक्षर ......शब्द
और शब्द कविता

आओ!
हम जुड़ें ऐसे
नई दुनियां बना दें।


एक अश्लील चुटकुला......
उजाड़ एक पुरानी बस्ती
बना दिया गया
एक खूबसूरत पार्क
और बोर्ड पर मैने
फूल तोड़ना मना है।

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